चोपाई

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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता।। अर्थ : है 'बजरंगबली अपने भक्तो को आठ प्रकार की सिद्धयां तथा नौ प्रकार की निधियां प्रदान कर सकते हैं। उन्हें यह सिद्धियां और निधियां देने का वरदान माता जानकी ने दिया था।
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भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।। अर्थ : आपका नाम मात्र लेने से भूत पिशाच भाग जाते हैं और नजदीक नहीं आते।
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रावन दूत हमहि सुनि काना। कपिन्ह बाँधि दीन्हें दुख नाना॥ श्रवन नासिका काटैं लागे। राम सपथ दीन्हें हम त्यागे॥2॥ भावार्थ: -हम रावण के दूत हैं, यह कानों से सुनकर वानरों ने हमें बाँधकर बहुत कष्ट दिए, यहाँ तक कि वे हमारे नाक-कान काटने लगे। श्री रामजी की शपथ दिलाने पर कहीं उन्होंने हमको छोड़ा॥2॥
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श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥ भावार्थ – श्री गुरुदेव के चरण–कमलों की धूलि से अपने मनरूपी दर्पण को निर्मल करके मैं श्री रघुवर के उस सुन्दर यश का वर्णन करता हूँ जो चारों फल (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) को प्रदान करने वाला है।
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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन–कुमार । बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥ भावार्थ – हे पवनकुमार! मैं अपने को शरीर और बुद्धि से हीन जानकर आपका स्मरण (ध्यान) कर रहा हूँ। आप मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करके मेरे समस्त कष्टों और दोषों को दूर करने की कृपा कीजिये।
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जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुं लोक उजागर ॥1॥ भावार्थ – ज्ञान और गुणों के सागर श्री हनुमान जी की जय हो। तीनों लोकों (स्वर्गलोक, भूलोक, पाताललोक) को अपनी कीर्ति से प्रकाशित करने वाले कपीश्वर श्री हनुमान जी की जय हो।
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रामदूत अतुलित बल धामा । अंजनि–पुत्र पवनसुत नामा ॥2॥ भावार्थ – हे अतुलित बल के भण्डार घर रामदूत हनुमान जी! आप लोक में अंजनी पुत्र और पवनसुत के नाम से विख्यात हैं।
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महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥3॥ भावार्थ – हे महावीर! आप वज्र के समान अंगवाले और अनन्त पराक्रमी हैं। आप कुमति (दुर्बुद्धि) का निवारण करने वाले हैं तथा सद्बुद्धि धारण करने वालों के संगी (साथी, सहायक) हैं।
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कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥4॥ भावार्थ—आपके स्वर्ण के समान कान्तिमान् अंगपर सुन्दर वेश–भूषा, कानों में कुण्डल और घुँघराले केश सुशोभित हो रहे हैं।
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हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥5॥ भावार्थ – आपके हाथ में वज्र (वज्र के समान कठोर गदा) और (धर्म का प्रतीक) ध्वजा विराजमान है तथा कंधे पर मूँज का जनेऊ सुशोभित है।

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