चोपाई

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संकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥6॥ भावार्थ– आप भगवान् शंकर के अंश (अवतार) और केशरी पुत्र के नाम से विख्यात हैं। आप (अतिशय) तेजस्वी, महान् प्रतापी और समस्त जगत्के वन्दनीय हैं।
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विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥7॥ भावार्थ – आप सारी विद्याओं से सम्पन्न, गुणवान् और अत्यन्त चतुर हैं। आप भगवान् श्री राम का कार्य (संसार के कल्याण का कार्य) पूर्ण करनेके लिये तत्पर (उत्सुक) रहते हैं।
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥8॥ भावार्थ – आप प्रभु श्री राघवेन्द्र का चरित्र (उनकी पवित्र मंगलमयी कथा) सुनने के लिये सदा लालायित और उत्सुक (कथारस के आनन्द में निमग्न) रहते हैं। श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता जी सदा आपके हृदय में विराजमान रहते हैं।
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सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥9॥ भावार्थ– आपने अत्यन्त लघु रूप धारण कर के माता सीता जी को दिखाया और अत्यन्त विकराल रूप धारण कर लंका नगरी को जलाया।
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भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचंद्र के काज सँवारे ॥10॥ भावार्थ – आपने अत्यन्त विशाल और भयानक रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और विविध प्रकार से भगवान् श्री रामचन्द्रजीं के कार्यों को पूरा किया।
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लाय सजीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥11॥ भावार्थ– आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया। इस कार्य से प्रसन्न होकर भगवान् श्री राम ने आपको हृदय से लगा लिया।
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रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥12॥ भावार्थ – भगवान् श्री राघवेन्द्र ने आपकी बड़ी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि तुम भाई भरत के समान ही मेरे प्रिय हो ।
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥13॥ भावार्थ – हजार मुख वाले श्री शेष जी सदा तुम्हारे यश का गान करते रहेंगे ऐसा कहकर लक्ष्मी पति विष्णु स्वरूप भगवान् श्री राम ने आपको अपने हृदयसे लगा लिया।
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥14॥ जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥15॥ भावार्थ – श्री सनक, सनातन, सनन्दन, सनत्कुमार आदि मुनिगण, ब्रह्मा आदि देवगण, नारद, सरस्वती, शेषनाग, यमराज, कुबेर तथा समस्त दिक्पाल भी जब आपका यश कहने में असमर्थ हैं तो फिर (सांसारिक) विद्वान् तथा कवि उसे कैसे कह सकते हैं? अर्थात् आपका यश अवर्णनीय है।
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तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥16॥ भावार्थ – आपने वानर राज सुग्रीव का महान् उपकार किया तथा उन्हें भगवान् श्री राम से मिलाकर [बालि वध के उपरान्त] राजपद प्राप्त करा दिया।

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