लाल देह लाली लसे,
अरू धर लाल लँगूर।
बज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर॥
अर्थ: हे हनुमान!! आपका शरीर लाल है और उस पर लाली भी लगी हुई है। आपका शरीर अत्यंत बलशाली है जिससे राक्षसों का संहार हुआ है। हे बंदर रुपी हनुमान!! आपकी सदैव जय हो, जय हो।
काज किये बड़ देवन के तुम,
वीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसों नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥
सार: हनुमानाष्टक के अंतिम पद में गोस्वामी तुलसीदास जी उनसे अपने कष्टों को हरने का कह रहे हैं।
बंधु समेत जबै अहिरावण,
लै रघुनाथ पाताल सिधारो।
देवहिं पूजि भली विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावण सैन्य समेत संहारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥
सार: हनुमान अष्टक का सातवां पद अहिरावण द्वारा श्रीराम व लक्ष्मण को बंदी बनाने और हनुमान की उनकी सहायता करने से संबंधित है।
रावण युद्ध अजान कियो तब,
नाग के फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥
सार: हनुमानाष्टक का छठा पद श्रीराम व लक्ष्मण के नागपाश में बंधने व हनुमान का उस संकट के निवारण करने से संबंधित है।
बाण लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तज्यो सुत रावण मारो।
लै गृह वैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सुबीर उपारो।
आनि संजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्राण उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥
सार: हनुमान अष्टक का पांचवां पद लक्ष्मण के मूर्छित होने व हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाकर उनकी प्राण रक्षा करने से संबंधित है।
रावण त्रास दई सिय को तब,
राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय अशोक सों आगि सु,
दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥
सार: हनुमानाष्टक का चौथा पद हनुमान के माता सीता के मिलन व उनके कष्ट निवारण से है।
अंगद के संग लेन गये सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौं हम सों जु,
बिना सुधि लाय इहाँ पगु धारो।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब,
लाय सिया सुधि प्राण उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥
सार: हनुमान अष्टक का तीसरा पद माता सीता की खोज व हनुमान द्वारा समुंद्र पार कर उन्हें ढूंढने से संबंधित है।
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि शाप दियो तब,
चाहिय कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥
सार: हनुमानाष्टक का दूसरा पद भक्त हनुमान की अपने आराध्य श्रीराम से भेंट व सुग्रीव की दुविधा का हल करने से संबंधित है।
बाल समय रबि भक्षि लियो तब,
तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आन करि बिनती तब,
छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥
सार: हनुमान अष्टक के प्रथम पद में भगवान हनुमान के बचपन काल की एक घटना का वर्णन है जब वे सूर्य को फल समझ कर निगल लेते हैं।