पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम्,
सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्॥
भावार्थ :— श्री हनुमान जी का जो मुख पश्चिम दिशा में देखने वाला है वह गरुड़ मुख है और वह मुख अत्यंत ही बलवान और सामर्थ्यशाली है। यह विष एवं भूतादि बाधाओं को (समस्त बाधाओं को ) दूर करने वाला है।
अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्,
अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥
भावार्थ :— श्री हनुमान जी की देह दक्षिण दिशा में देखने वाली है और इनका मुख सिंह मुखी है जो अत्यंत ही दिव्य और अद्भुत है। श्री हनुमान जी का मुख भय को समाप्त करने वाला तथा शत्रुओं के लिए भय पैदा करने वाला है।
पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्,
दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटिकुटिलेक्षणम्॥
भावार्थ :— श्री हनुमान जी का मुख सदा ही पूर्व दिशा की ओर रहता है, यह पूर्व मुखी हैं। श्री हनुमान जी वानर मुखी हैं इनका तेज करोड़ों सूर्य के समतुल्य है। श्री हनुमान जी के मुख पर विशाल दाढ़ी है और इनकी भ्रकुटी टेढ़ी है।
पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम्,
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम्।।
भावार्थ :— श्री हनुमान जी पाँच मुख वाले, अत्यन्त विशालकाय, पंद्रह नेत्र (त्रि-पञ्च-नयन) धारी हैं, श्री हनुमान जी दस हाथों वाले हैं, वे सकल काम एवं अर्थ इन पुरुषार्थों की सिद्धि कराने वाले देव हैं। भाव यह है की श्री हनुमान जी पाँच मुख वाले, पंद्रह नेत्र धारी और दस हाथों वाले हैं जो सभी कार्यों को सिद्ध करते हैं।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय ऊर्ध्वमुखाय
हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा।
भावार्थ :— सकल जनों को वश में करने वाले, ऊर्ध्वमुख को, अश्वमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को मेरा नमस्कार है।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय उत्तरमुखाय
आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा।
भावार्थ :— सकल संपदाएँ प्रदान करने वाले उत्तरमुख को, आदिवराहमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमान जी को मेरा नमस्कार है।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय
गरुडाननाय सकलविषहराय स्वाहा।
भावार्थ :— सारे विषों का हरण करने वाले पश्चिम मुख को, गरुडमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को मेरा नमस्कार है।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय
नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा।
भावार्थ :— दुष्प्रवृत्तियों के प्रति भयानक (करालवदनाय), सारे भूतों का उच्छेद करने वाले, दक्षिणमुख को, नरसिंहमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को मेरा नमस्कार है।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय
सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा।
भावार्थ :— सकल शत्रुओं का संहार करने वाले पूर्वमुख को, कपिमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को मेरा नमन है।
मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम्।
शत्रुं संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर॥
भावार्थ :— श्री हनुमान जी वानरों में श्रेष्ठ तथा प्रचंड तो हैं ही साथ ही अत्यधिक उत्साही भी हैं। श्री हनुमान जी आप शत्रुओं का नाश करने वाले हैं। हे कपियों में श्रेष्ठ श्रीमन् पंचमुख-हनुमानजी, कृपया मेरे शत्रुओं का संहार कीजिए तथा प्रत्येक संकट से मेरा उद्धार कीजिए।