हनुमान चालीसा के समान ही हनुमान साठिका की रचना भी संत गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा ही की गई है।
हनुमान साठिका के अंतर्गत संत गोस्वामी तुलसीदास जी पवन कुमार अर्थात हनुमान जी की कीर्ति का वर्णन करते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि जब आपने माता अंजनी के गर्भ से जन्म लिया तब सभी देवी-देवताओं ने आपकी जय-जयकार की और आकाश में नगाड़ों के बजने के साथ ही देवताओं के मन में हर्ष उत्पन्न हुआ।
हनुमान साठिका के अंतर्गत तुलसीदास जी लिखते हैं कि हनुमान जी ने सूर्य को लाल फल समझकर रथ सहित ही उसे खा लिया था। तब सभी की प्रार्थना पर आपने सूर्य देव को मुक्त किया। आपको माता सीता द्वारा अजय व अमर होने का आशीर्वाद भी प्राप्त है।
लक्ष्मण जी को जब शक्ति लगी तब आप ही सुषेन वैद्य को भवन समेत उठा कर ले आए थे और संजीवनी बूटी लाकर आपने ही लक्ष्मण जी के प्राणों को बचाया था। अहिरावण से आपने ही रामजी व लक्ष्मण जी को मुक्त कराया था।
आप सेवकों के दुखों को पल भर में नष्ट कर देते हो। हे पवन कुमार आपकी जय हो। आप जीवन में आने वाले संकट रूपी अंधेरे को सूर्य के समान दूर कर देते हैं। हनुमान जी आपको सभी संकट मोचन के नाम से बुलाते हैं।
जो आपके नाम का ध्यान करता है उसे रत्ती भर भी संकट नहीं होता है। हनुमान साठिका के अंतर्गत हनुमान जी से भक्तों के बंधन को काटने के लिए विनती की गई है। बजरंग बाण के समान हनुमान साठिका के अंतर्गत भी हनुमान जी को श्री राम की शपथ दी गई है।
हनुमान साठिका के अंतर्गत संत तुलसीदास जी लिखते हैं कि जो कोई भी मंगलवार को विधिपूर्वक हवन करेगा, धूप, दीप, नैवेद्य समर्पित करेगा और भक्तिभाव से हनुमान जी की स्तुति करेगा वह चाहे देवता हो या मनुष्य हो या मुनि हो तुरंत ही उसका फल पायेगा।
संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने मंगलवार का दिन हनुमान साठिका को पढ़ने के लिए उत्तम बताया है। संत गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि जो कोई भी हनुमान साठिका का पाठ करेगा वह सभी कष्टों, रोगों चिंताओं और भय आदि से मुक्त रहेगा। इसके साक्षी स्वयं भगवान शिव जी होंगे।