गुजरात के भावनगर के सारंगपुर में विराजने वाले कष्टभंजन हनुमान यहां महाराजाधिराज के नाम से राज करते हैं. वे सोने के सिंहासन पर विराजकर अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं. कहते हैं कि बजरंग बली के इस दर पर आकर भक्तों का हर दुख, उनकी हर तकलीफ का इलाज हो जाता है. फिर चाहे बात बुरी नजर की हो या शनि के प्रकोप से मुक्ति की.
हनुमान ने अपने बाल रूप में ही सूर्यदेव को निगल लिया था. उन्होंने राक्षसों का वध किया और लक्ष्मण के प्राणदाता भी बने. बजरंग बली ने समय-समय पर देवताओं को अनेक संकटों से निकाला. पवनपुत्र आज भी अपने इस धाम में भक्तों के कष्ट हर लेते हैं, इसलिए उन्हें कष्टभंजन हनुमान कहते हैं. हनुमान के इस इस दर पर आते ही हर कष्ट दूर हो जाता है. यहां आकर हर मनोकामना पूरी होती है.
विशाल और भव्य किले की तरह बने एक भवन के बीचों-बीच कष्टभंजन का अतिसुंदर और चमत्कारी मंदिर है. केसरीनंदन के भव्य मंदिरों में से एक कष्टभंजन हनुमान मंदिर भी है. गुजरात में अहमदाबाद से भावनगर की ओर जाते हुए करीब 175 किलोमीटर की दूरी पर कष्टभंजन हनुमान का यह दिव्य धाम है.
यह मंदिर मूल रूप से स्वामीनारायण संप्रदाय में सर्वाधिक प्रमुख है। गोपालानंद स्वामी ने हनुमान की मूर्ति स्थापित की थी। लेखक रेमंड विलियम्स के अनुसार, यह बताया गया है कि जब सद्गुरु गोपालानंद स्वामी ने हनुमान की मूर्ति को स्थापित किया, तो उन्होंने उसे एक छड़ी से छुआ और मूर्ति जीवित हो गई और चलायमान हो गई। यह कहानी इस मंदिर में किए जाने वाले उपचार अनुष्ठान के लिए घोषणापत्र बन गई है।यहां हनुमान की मूर्ति की एक मजबूत आकृति निर्मित है, जो एक राक्षसी को अपने पैर के नीचे कुचल रही है और अपने दांतों को नोंच रही है। 1899 में वड़ताल के कोठारी गोवर्धनदास ने मंदिर के मामलों के प्रबंधन के लिए श्री गोपालानंद स्वामी को नियुक्त किया; तथा अपने कार्यकाल के दौरान, शास्त्री यज्ञपुरुषदास ने इस स्थल का जीर्णोद्धार किया, परिसर के बगल में बंगले का निर्माण किया और परिसर को इसकी वर्तमान स्थिति में लाने के लिए अधिक से अधिक भूमि का अधिग्रहण किया। यज्ञपुरुषदास ने फिर 1907 में इससे अलग होकर बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामिनारायण संस्था बनाया। गोवर्धनदास ने तब सारंगपुर के मंदिर का एक नया महंत नियुक्त किया। तब से वड़ताल गढ़ी ने मंदिर में अतिरिक्त सुधार और भवनों का निर्माण कार्य किया है।
बजरंग बली के इस धाम को उनके अन्य मंदिरों से अलग विशेष स्थान दिलाती है उनके पैरों में विराजमान शनि की मूर्ति. क्योंकि यहां शनि बजरंग बली के चरणों में स्त्री रूप में दर्शन देते हैं. तभी तो जो भक्त शनि प्रकोपों से परेशान होते हैं वे यहां आकर नारियल चढ़ाकर समस्त चिंताओं से मुक्ति पा जाते हैं.
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