text

image
असन बसन हीन बिषम बिषाद लीन, देखि दीन टूबरो करे न हाय हाय को। तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को॥ नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को। ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को॥४१॥ भावार्थ – जिसे भोजन-वस्त्रसे रहित भयंकर विषादमें डूबा हुआ और दीन-दुर्बल देखकर ऐसा कौन था जो हाय-हाय नहीं करता था, ऐसे अनाथ तुलसीको दयासागर स्वामी रघुनाथजीने सनाथ करके अपने स्वभावसे उत्तम फल दिया। इस बीचमें यह नीच जन प्रतिष्ठा पाकर फूल उठा (अपनेको बड़ा समझने लगा) और तन-मन-वचनसे रामजीका भजन छोड़ दिया, इसीसे शरीरमेंसे भयंकर बरतोरके बहाने रामचन्द्रजीका नमक फूट-फूटकर निकलता दिखायी दे रहा है ॥ ४१ ॥
image
जीओ जग जानकी जीवन को कहाइ जन, मरिबे को बारानसी बारि सुर सरि को| तुलसी के नल मोदक हैं ऐसे ठाँऊ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि को॥ मो को झूँटो साँचो लोग राम कौ कहत सब, मेरे मन मान है न हर को न हरि को। भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सके टूर करि को॥४२॥ भावार्थ – जानकी-जीवन रामचन्द्रजी का दास कहलाकर संसार में जीवित रहूँ और मरनेके लिये काशी तथा गंगाजल अर्थात् सुरसरितीर है। ऐसे स्थानमें (जीवन-मरणसे) तुलसीके दोनों हाथों में लड्डू है, जिसके जीने-मरनेसे लड़के भी सोच न करेंगे सब लोग मुझको झूठा-सच्चा रामका ही दास कहते हैं और मेरे मनमें भी इस बातका गर्व है कि मैं रामचन्द्रजीको छोड़कर न शिवका भक्त हूँ, न विष्णु का। शरीर की भारी पीड़ा से विकल हो रहा हूँ, उसको बिना रघुनाथ जी के कौन दूर कर सकता है? ॥ ४२ ॥
image
सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै। मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै॥ ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि की जै तुलसी को जानि जन फुर कै। कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै॥४३॥ भावार्थ – हे हनुमान जी! स्वामी सीतानाथजी आपके नित्य ही सहायक हैं और हितोपदेशके लिये महेश मानो गुरु ही हैं। मुझे तो तन, मन, वचनसे आपके चरणोंकी ही शरण है, आपके भरोसे मैंने देवताओंको देवता करके नहीं माना। रोग व प्रेतद्वारा उत्पन्न अथवा किसी दुष्टके उपद्रवसे हुई पीड़ाको दूर करके तुलसीको अपना सच्चा सेवक जानकर इसकी शान्ति कीजिये। हे कपिनाथ, रघुनाथ, भोलानाथ और भूतनाथ! रोगरूपी महासागरको गायके खुरके सामान क्यों नहीं कर डालते?॥ ४३ ॥
image
कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिये। हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरज्जी सब देखियत दुनिये ॥ माया जीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहें साँची मन गुनिये। तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहिं, हों हूँ रहों मौनही वयो सो जानि लुनिये॥४४॥ भावार्थ – मैं हनुमान जी से, सुजान राजा रामसे और कृपानिधान शंकरजीसे कहता हूँ, उसे सावधान होकर सुनिये। देखा जाता है कि विधाताने सारी दुनियाको हर्ष, विषाद, राग, रोष, गुण और दोषमय बनाया है। वेद कहते हैं कि माया, जीव, काल, कर्म और स्वभावके करनेवाले रामचन्द्रजी हैं। इस बातको मैंने चित्तमें सत्य माना है। मैं विनती करता हूँ, मुझे यह समझा दीजिये कि आपसे क्या नहीं हो सकता। फिर मैं भी यह जानकर चुप रहूँगा कि जो बोया है वही काटता हूँ॥ ४४ ॥

Download Mere Ram App Now!!


Connect to Mere Ram App, anytime, anywhere!