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गंगा बड़ी गोदावरी तीरथ बड़ा प्रयाग सबसे बड़ी नगरी अयोध्या जंहा जन्मे श्री राम।
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जिनके मन में श्री राम है, भाग्य में उसके वैकुण्ठ धाम है, उनके चरणों में जिसने जीवन वार दिया, संसार में उसका कल्याण है। जय श्री राम।
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देख तज के पाप रावण, राम तेरे मन में हैं, राम मेरे मन में है, मन से रावण जो निकाले, राम उसके मन में है। जय श्री राम।
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श्री रघुवीर भक्त हितकारी, सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी, निशि दिन ध्यान धरै जो कोई, ता सम भक्त और नाहिं होई। ।। जय श्री राम ।।
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हे मेरे प्रभु श्रीराम ना लोगों से भरी बस्ती चाहिए ना ऊँची हस्ती चाहिए मुझे तो हे प्रभु आपके दिवानेपन की मस्ती चाहिए।
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आओ मिलकर करें साधना, दिव्य शक्ति के तंत्र की गूँजे फिर जयकार धरा पर, सत्य सनातन धर्म की जय श्री राम।
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शस्त्र कौशल में पारंगत है, और शास्त्र की वाणी में धार है, फिर भी कमल हृदय शांत सा, क्यूंकि ये श्री राम के संस्कार है।
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होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥ अस कहि लगे जपन हरिनामा। गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥ अर्थ :तुलसीदास जी कहते कि, जो कुछ इस संसार में राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा बढ़ावे। अर्थात इस विषय में तर्क करने से कोई लाभ नहीं। ऐसा कहकर भगवान शिव हरि का नाम जपने लगे और सती वहाँ गईं जहाँ सुख के धाम प्रभु राम थे।
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धन्य देश सो जहं सुरसरी। धन्य नारी पतिव्रत अनुसारी॥ धन्य सो भूपु नीति जो करई। धन्य सो द्विज निज धर्म न टरई॥ अर्थ : वह देश धन्य है, जहां गंगा जी बहती हैं। वह स्त्री धन्य है जो पतिव्रत धर्म का पालन करती है। वह राजा धन्य है जो न्याय करता है और वह ब्राह्मण धन्य है जो अपने धर्म से नहीं डिगता है।
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अगुण सगुण गुण मंदिर सुंदर, भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर। काम क्रोध मद गज पंचानन, बसहु निरंतर जन मन कानन।। अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि हे गुणों के मंदिर ! आप सगुण और निर्गुण दोनों है। आपका प्रबल प्रताप सूर्य के प्रकाश के समान काम, क्रोध, मद और अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करने वाला है। आप सर्वदा ही अपने भक्तजनों के मनरूपी वन में निवास करने वाले हैं।

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