सुविचार

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ऊँ हं हं हांक देत कपि चंचल । ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल ।। भावार्थ:- हे हं वर्ण रूपी आपकी हाँक से ही समस्त दुष्ट जन ऐसे निस्तेज हो जाते हैं जैसे सूर्योदय के समय अंधकार सहम जाता है ।।
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अपने जन को तुरत उबारो । सुमिरत होय आनन्द हमारो ।। भावार्थ:- हे प्रभु आप ऐसे आनंद के सागर हैं कि आपका सुमिरण करते ही दास जन आनंदित हो उठते हैं अब अपने दास को विपत्तियों से शीघ्र ही उबार लो ।।
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यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहो फिर कौन उबारै ।। भावार्थ:- यह बजरंग बाण यदि किसी को मार दिया जाए तो फिर भला इस अखिल ब्रह्माण्ड में उबारने वाला कौन है ?
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पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करैं प्राम की ।। भावार्थ:- जो भी पूर्ण श्रद्धा युक्त होकर नियमित इस बजरंग बाण का पाठ करता है , श्री हनुमंत लला स्वयं उसके प्राणों की रक्षा में तत्पर रहते हैं ।।
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यह बजरंग बाण जो जापै । ताते भूत प्रेत सब कांपै ।। भावार्थ:- जो भी व्यक्ति नियमित इस बजरंग बाण का जप करता है , उस व्यक्ति की छाया से भी बहुत-प्रेतादि कोसों दूर रहते हैं ।।
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धूप देय अरु जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहै कलेशा ।। भावार्थ:- जो भी व्यक्ति धुप-दीप देकर श्रद्धा पूर्वक पूर्ण समर्पण से बजरंग बाण का पाठ करता है उसके शरीर पर कभी कोई व्याधि नहीं व्यापती है ।।
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उर प्रतीति दृढ सरन हवै,पाठ करै धरि ध्यान। बाधा सब हर करै,सब काज सफल हनुमान। प्रेम प्रतीतिहि कपि भजे,सदा धरै उर ध्यान। तेहि के कारज सकल सुभ,सिद्ध करैं हनुमान॥ भावार्थ:- प्रेम पूर्वक एवं विश्वासपूर्वक जो कपिवर श्री हनुमान जी का स्मरण करता हैं एवं सदा उनका ध्यान अपने हृदय में करता है उसके सभी प्रकार के कार्य हनुमान जी की कृपा से सिद्ध होते हैं ।।

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