रीछ कीसपति सबै बहोरी । राम लषन कीने यक ठोरी ॥
सब देवतन की बन्दि छुड़ाये । सो कीरति मुनि नारद गाये ॥
अछयकुमार दनुज बलवाना । कालकेतु कहं सब जग जाना ॥
कुम्भकरण रावण का भाई । ताहि निपात कीन्ह कपिराई ॥
भावार्थ:
जहाँ जामवंत और सुग्रीव थे, वहाँ आप श्रीरामलक्ष्मण को लौटा लाए। आपने सब देवताओं को बंधन से छुड़ा दिया। नारद मुनि ने आपका यशगान किया अक्षयकुमार राक्षस बहुत बलवान था। जिसे स्वामी केतु कहते यह सब संसार जानता है। रावण का भाई कुम्भकरण था । हे हनुमान जी ! इन सबका आपने विनाश किया॥१०॥
मेघनाद पर शक्ति मारा । पवन तनय तब सो बरियारा ॥
रहा तनय नारान्तक जाना । पल में हते ताहि हनुमाना ॥
जहं लगि भान दनुज कर पावा । पवन तनय सब मारि नसावा।
जय मारुत सुत जय अनुकूला । नाम कृसानु सोक सम तूला ॥
भावार्थ:
आपने युद्ध में मेघनाद को पछाड़ा । हे पवनकुमार! आपके समान कौन बलवान है ? मूल नक्षत्र में जन्म लेनेवाले नारान्तक – नामक रावण के पुत्र को हे हनुमानजी ! आपने क्षण भर में परास्त कर दइया । जहाँ – जहाँ आपने राक्षसों को पाया, हे शिव अवतार ! आपने उन्हें मारकर ढकेल दिया । हे पवनपुत्र ! आपकी जय हो । आप सेवकों के कार्य-सिद्ध में सहायक हुए । उनके शोक रूपी रूई को जलाने में आपका नाम अग्नि के समान है ॥११॥
जहं जीवन के संकट होई । रवि तम सम सो संकट खोई ॥
बन्दि परै सुमिरै हनुमाना । संकट कटै धरै जो ध्याना ॥
जाको बांध बामपद दीन्हा । मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा ॥
सो भुजबल का कीन कृपाला । अच्छत तुम्हें मोर यह हाला ॥
भावार्थ:
जिसके जीवन में कोई संकट हो, आप उसे वैसे ही दूर कर देते हैं जैसे अँधेरे को सूर्य । हे हनुमानजी ! बंदी होने पर जो आपका स्मरण करता है उसकी रक्षा करने के लिये आप गदा और चक्र लेकर चल पड़ते हैं। यमराज को भी ऊपर दिशा में फेंक देते हैं और मृत्यु को भी बाँधकर उनकी बुरी दशा करते हैं । हे कृपासागर ! आपकी वह शारीरिक शक्ति कहाँ गयी जो आपके रहते मेरी यह दशा हो रही है ॥१२॥
आरत हरन नाम हनुमाना । सादर सुरपति कीन बखाना ॥
संकट रहै न एक रती को । ध्यान धरै हनुमान जती को ॥
धावहु देखि दीनता मोरी । कहौं पवनसुत जुगकर जोरी ॥
कपिपति बेगि अनुग्रह करहु । आतुर आइ दुसै दुख हरहु ॥
भावार्थ:
हे हनुमानजी ! आपका नाम संकटमोचन है। श्री सरस्वती जी और देवराज इंद्र ऐसा वर्णन करते हैं कि जो व्यकि ब्रह्मचारी हनुमानजी आपका ध्यान धरता है उसका एक रत्ती के बराबर भे संकट नहीं रह सकता। आप मेरी दीनता देखकर अति तीव्र गति से आइये और मेरे बंधनों को काट दीजिए। मैं हाथ जोड़कर विनती करता हूँ। हे हनुमानजी ! शीघ्र कृपा कीजिये। मुझ दा का दुःख दूर करने के लिए आप उतावले होकर आइये ॥१३॥
राम सपथ मैं तुमहिं सुनाया । जवन गुहार लाग सिय जाया ॥
यश तुम्हार सकल जग जाना । भव बन्धन भंजन हनुमाना ॥
यह बन्धन कर केतिक बाता । नाम तुम्हार जगत सुखदाता ॥
करौ कृपा जय जय जग स्वामी । बार अनेक नमामि नमामी ॥
भावार्थ:
हे शिव अवतार ! यदि आप मेरी पुकार सुनकर न आओ तो मैं आपको श्रीराम की शपथ देता हूं । आप्का यश सारा संसार जानता है हे हनुमानजी, आप संसार में बार-बार जन्म लेने के भय को भी दूर कर देते हैं फिर मेरा यह बंधन कितना सा है ? आपका जगत् – सुखदाता नाम है । हे जग के स्वामी ! आपकी जय हो । आप कृपा कीजिये। मैं अनेक बार आपको नमस्कार करता हूँ॥१४॥
भौमवार कर होम विधाना । धूप दीप नैवेद्य सुजाना ॥
मंगल दायक को लौ लावे । सुन नर मुनि वांछित फल पावे ॥
जयति जयति जय जय जग स्वामी । समरथ पुरुष सुअन्तरजामी ॥
अंजनि तनय नाम हनुमाना । सो तुलसी के प्राण समाना ॥
भावार्थ:
जो कोई मंगलवार को विधिपूर्वक हवन करे , धूप – दीप-नैवद्य समर्पित करे और मंगलकारक श्रीहनुमानजी में लगन लगावे , वह चाहे देवता हो या मनुष्य हो या मुनि हो , तुरंत ही उसका फल पायेगी । हे जगत् के स्वामी !आपकी जय हो, जय हो, जय हो, जय हो ! हे हनुमानजी ! आप समर्थविश्वात्मा, मन की बात जानने वाले, ‘ आंजनेय आपका नाम है । आप तुलसी के कृपा-निधान हैं ॥१५॥
॥दोहा॥
जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ॥
राम लषन सीता सहित, सदा करो कल्याण ॥
बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान ॥
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण ॥
जो नित पढ़ै यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि ।
रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥
भावार्थ:
सुग्रीवजी की जय, अंगदजी की जय , हनुमानजी की जय, श्रीराम लक्ष्मणजी, सीताजी सहित सदा कल्याण कीजिये । मंगलवार को प्रमाण मानकर हनुमान जी का यह पाठ जो भी करता है, मनुष्य निश्चय कर ध्यान करे तो कल्याणकारी परमपद प्राप्त करता है। तुलसीदास की यह घोषणा है कि जो इस हनुमान साठिका को नित्य पढ़ेगा वह कभी संकट में नहीं पड़ेगा। श्री शिवजी साक्षी हैं। .
॥सवैया॥
आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।
अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ॥
जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।
दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ॥
भावार्थ:
(श्री तुलसीदासजी कहते हैं ) हे हनुमानजी ! मैं भारी विपत्ति में पड़कर आपको पुकार रहा हूँ। आप मेरी विनय सुनिये । अंगद , नल , नील , महादेव , राजा बलि, भगवान राम ( देव ) बलराम ,शूरवीर , जाम्वान् , सुग्रीव , पवनपुत्र हनुमान , द्विद और मयन्द – इन बारह वीरों की मैं बलिहारी (न्यौछावर) हूँ , भक्त के दुःख और दोष को दूर कीजिये।