देख कपि दी दशा न्यारी
खिलखिलाये सब दरबारी
प्रभु राम भी हँसके बोले
ये क्या रूप है हनुमत भोले
हनु कहा जो लोग है हँसते
वो नहीं इसका भेद समझते
जानकी मैया है ये कहती
इस से आपकी आयु बढ़ती
चोला ये सिन्दूर का चढ़े जो मंगलवार
कपि के स्वामी की इस से आयु बढे अपार
विजय प्राप्त कर जब लंका पे
राम अयोध्या नगरी लौटे
राजसिंहासन पर जब बैठे
फूल गगन से ख़ुशी के बरसे
जानकी वल्लभ करुणा कर ने
सबको दिए उपहार निराले
मुक्ताहार जो मणियों वाला
जिसका अद्भुत दिव्या उजाला
सीता जी के कंठ सजाया
राम ही जाने राम की माया
सीता ने पल देर ना कीन्ही
वो माला हनुमान को दीन्हि
महावीर थे कुछ घबराये
रहे देखते वो चकराए
जैसे उनको भाये ना माला
हृदय को भरमाये ना माला
गले से माला झट दी उतारी
तोड़े मोती बारी बारी
हीरे कई चबाकर देखे
सारे रत्न दबाकर देखे
व्याकुल उसकी हो गयी काया
पानी नैनन में भर आया
जैसे दिल ही टूट गया हो
भाग्य का दर्पण फूट गया हो
चकित हुए थे सब दरबारी
बोझ सिया के मन पे भारी
राम ने कैसे खेल रचाया
कोई भी इसको जान ना पाया