अगुण सगुण गुण मंदिर सुंदर,
भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर।
काम क्रोध मद गज पंचानन,
बसहु निरंतर जन मन कानन।।
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि हे गुणों के मंदिर ! आप सगुण और निर्गुण दोनों है। आपका प्रबल प्रताप सूर्य के प्रकाश के समान काम, क्रोध, मद और अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करने वाला है। आप सर्वदा ही अपने भक्तजनों के मनरूपी वन में निवास करने वाले हैं।
Text Copied
करमनास जल सुरसरि परई,
तेहि काे कहहु शीश नहिं धरई।
उलटा नाम जपत जग जाना,
बालमीकि भये ब्रह्मसमाना।।
अर्थ: तुलसीदास कहते है कि कर्मनास का जल (जो कि अशुद्ध से अशुद्ध जल) यदि गंगा में पड़ जाए तो उसे कौन सिर नहीं पर रखता है? अर्थात अशुद्ध जल भी गंगा के साथ मिलकर गंगा के समान पवित्र हो जाता है। सारे संसार को विदित है की उल्टा नाम का जाप करके वाल्मीकि जी ब्रह्म के समान हो गए।
Text Copied
कहेहु तात अस मोर प्रनामा।
सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी॥
अर्थ : हे भगवान श्री राम ! आपको मेरा प्रणाम और आपसे निवेदन है - हे प्रभु! यद्यपि आप सब प्रकार से पूर्ण हैं अर्थात आपको किसी प्रकार की कामना नहीं है, तथापि दीन-दुःखियों पर दया करना आपका प्रकृति है, अतः हे नाथ ! आप मेरे भारी संकट को हर लीजिए |
Text Copied
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तुम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान॥
अर्थ : मोह ही जिनका मूल आधार है, ऐसे अज्ञानजनित, बहुत पीड़ा देने वाले, तमरूप अभिमान का हमें त्याग कर चाहिए और रघुकुल के स्वामी, कृपा के समुद्र भगवान श्री रामचंद्रजी का भजन करना चाहिए।
Text Copied
एहि महँ रघुपति नाम उदारा।
अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी।
उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥
अर्थ : रामचरितमानस में श्री रघुनाथजी का उदार नाम है, जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, मंगल (कल्याण) करने वाला और अमंगल को हरने वाला है, जिसे पार्वती जी सहित भगवान शिवजी सदा जपा करते हैं।
Text Copied
जासु नाम जपि सुनहु भवानी।
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा।
प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥
अर्थ :हे भवानी सुनो जिनका नाम जपकर ज्ञानी मनुष्य संसार रूपी जन्म-मरण के बंधन को काट डालते हैं, क्या उनका दूत किसी बंधन में बंध सकता है? लेकिन प्रभु के कार्य के लिए हनुमान जी ने स्वयं को शत्रु के हाथ से बंधवा लिया।
Text Copied
हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए।
कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥
अर्थ : तुलसीदास जी कहते है कि, हरि अनंत हैं अर्थात उनका कोई पार नहीं पा सकता और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। भगवान श्री रामचंद्र के सुंदर चरित्र का कोई बखान नहीं कर सकता क्युकि सुंदर चरित्र को करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते।
Text Copied
अनुचित उचित काज कछु होई,
समुझि करिय भल कह सब कोई।
सहसा करि पाछे पछिताहीं,
कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं।।
अर्थ: उसी को सभी लोग भला कहते हैं, जो किसी भी कार्य का परिणाम उचित होगा या अनुचित, यह पहले जानकर करता है । ऐसे लोग जो बिना विचारे काम करते हैं वे बाद में पछताते हैं, उनको वेद और विद्वान कोई भी बुद्धिमान नहीं मानता।
Text Copied
जा पर कृपा राम की होई।
ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया।
तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥
अर्थ : तुलसीदास जी कहते है कि जिन पर भगवान राम की कृपा होती है, उन्हें कोई सांसारिक दुःख छू तक नहीं सकता। और जिस पर परमात्मा की कृपा हो जाती है उस पर तो सभी की कृपा अपने आप होने लगती है । जिनके अंदर कपट, पाखंड, झूठ और माया नहीं होती, उन्हीं के हृदय में रघुपति राम बसते हैं अर्थात उनके पर प्रभु की कृपा सदैव होती है।
Text Copied
बिनु सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई।
पारस परस कुघात सुहाई।।
अर्थ :तुलसीदास जी कहते है, सत्संग के बिना विवेक नहीं आता और राम जी की कृपा के बिना वह सत्संग नहीं होता, सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। दुष्ट भी सत्संगति पाकर वैसे ही सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर सोना बन जाता है।