सुविचार

image
चौपाई : धन्य धन्य मैं धन्य पुरारी। सुनेउँ राम गुन भव भय हारी॥5॥ भावार्थ:- हे त्रिपुरारि। मैं धन्य हूँ, धन्य-धन्य हूँ जो मैंने जन्म-मृत्यु के भय को हरण करने वाले श्री रामजी के गुण (चरित्र) सुने॥5॥
image
चौपाई : कछुक राम गुन कहेउँ बखानी। अब का कहौं सो कहहु भवानी॥ सुनि सुभ कथा उमा हरषानी। बोली अति बिनीत मृदु बानी॥4॥ भावार्थ:- मैंने श्री रामजी के कुछ थोड़े से गुण बखान कर कहे हैं। हे भवानी! सो कहो, अब और क्या कहूँ? श्री रामजी की मंगलमयी कथा सुनकर पार्वतीजी हर्षित हुईं और अत्यंत विनम्र तथा कोमल वाणी बोलीं-॥4॥
image
चौपाई : बिमल कथा हरि पद दायनी। भगति होइ सुनि अनपायनी॥ उमा कहिउँ सब कथा सुहाई। जो भुसुंडि खगपतिहि सुनाई॥3॥ भावार्थ:- यह पवित्र कथा भगवान्‌ के परम पद को देने वाली है। इसके सुनने से अविचल भक्ति प्राप्त होती है। हे उमा! मैंने वह सब सुंदर कथा कही जो काकभुशुण्डिजी ने गरुड़जी को सुनाई थी॥3॥
image
चौपाई : राम अनंत अनंत गुनानी। जन्म कर्म अनंत नामानी॥ जल सीकर महि रज गनि जाहीं। रघुपति चरित न बरनि सिराहीं॥2॥ भावार्थ:- भगवान्‌ श्री राम अनंत हैं, उनके गुण अनंत हैं, जन्म, कर्म और नाम भी अनंत हैं। जल की बूँदें और पृथ्वी के रजकण चाहे गिने जा सकते हों, पर श्री रघुनाथजी के चरित्र वर्णन करने से नहीं चूकते॥2॥
image
चौपाई : गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा। मैं सब कही मोरि मति जथा॥ राम चरित सत कोटि अपारा। श्रुति सारदा न बरनै पारा॥1॥ भावार्थ:- (शिवजी कहते हैं-) हे गिरिजे! सुनो, मैंने यह उज्ज्वल कथा, जैसी मेरी बुद्धि थी, वैसी पूरी कह डाली। श्री रामजी के चरित्र सौ करोड़ (अथवा) अपार हैं। श्रुति और शारदा भी उनका वर्णन नहीं कर सकते॥1॥
image
दोहा : प्रेम सहित मुनि नारद बरनि राम गुन ग्राम। सोभासिंधु हृदयँ धरि गए जहाँ बिधि धाम॥51॥ भावार्थ:- श्री रामचंद्रजी के गुणसमूहों का प्रेमपूवक वर्णन करके मुनि नारदजी शोभा के समुद्र प्रभु को हृदय में धरकर जहाँ ब्रह्मलोक है, वहाँ चले गए॥51॥
image
चौपाई : कलि मल मथन नाम ममताहन। तुलसिदास प्रभु पाहि प्रनत जन॥5॥ भावार्थ:- आपका नाम कलियुग के पापों को मथ डालने वाला और ममता को मारने वाला है। हे तुलसीदास के प्रभु! शरणागत की रक्षा कीजिए॥5॥
image
चौपाई : सुजस पुरान बिदित निगमागम। गावत सुर मुनि संत समागम॥ कारुनीक ब्यलीक मद खंडन। सब बिधि कुसल कोसला मंडन॥4॥ भावार्थ:- आपका सुंदर यश पुराणों, वेदों में और तंत्रादि शास्त्रों में प्रकट है! देवता, मुनि और संतों के समुदाय उसे गाते हैं। आप करुणा करने वाले और झूठे मद का नाश करने वाले, सब प्रकार से कुशल (निपुण) श्री अयोध्याजी के भूषण ही हैं॥4॥
image
चौपाई : भुज बल बिपुल भार महि खंडित। खर दूषन बिराध बध पंडित॥ रावनारि सुखरूप भूपबर। जय दसरथ कुल कुमुद सुधाकर॥3॥ भावार्थ:- अपने बाहुबल से पृथ्वी के बड़े भारी बोझ को नष्ट करने वाले, खर दूषण और विराध के वध करने में कुशल, रावण के शत्रु, आनंदस्वरूप, राजाओं में श्रेष्ठ और दशरथ के कुल रूपी कुमुदिनी के चंद्रमा श्री रामजी! आपकी जय हो॥3॥
image
चौपाई : जातुधान बरूथ बल भंजन। मुनि सज्जन रंजन अघ गंजन॥ भूसुर ससि नव बृंद बलाहक। असरन सरन दीन जन गाहक॥2॥ भावार्थ:- आप राक्षसों की सेना के बल को तोड़ने वाले हैं। मुनियों और संतजनों को आनंद देने वाले और पापों का नाश करने वाले हैं। ब्राह्मण रूपी खेती के लिए आप नए मेघसमूह हैं और शरणहीनों को शरण देने वाले तथा दीन जनों को अपने आश्रय में ग्रहण करने वाले हैं॥2॥

अभी मेरे राम ऐप डाउनलोड करें !!


मेरे राम ऐप से जुड़े, कभी भी, कहीं भी!